25 साल तक एक पुरुष के शरीर में रह रही थी बॉलीवुड की ये मशहूर हस्ती, जानें पूरा मामला
बॉलीवुड में फिल्मों की नई कहानियां लोगों को प्रेरित करने के लिए पर्दे पर उतारी जाती है। ऐसे में कई सामजिक किस्सों को उज्जवल करती है तो कई उनके जेंडर को। शायद यह सुनकर आपको थोड़ा अटपट जरूर लगा होगा। यह तो आप भी जानते हैं कि, जेंडर पर फिल्में अब बनने लगी है। इससे लोगों की सोच में बदलाव आया है। अब हाल ही में, एक स्क्रीनप्ले राइटर गज़ल धालीवाल ने ऐसे खुलासे किए है जिसे सुनकर आपका मुंह खुला का खुला रह जाएगा।
आपको बता दें कि, उन्होंने ”एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा” फिल्म की स्टोरी लिखी थी और उस फिल्म में दो लड़कियों की प्रेम कहानी को दिखाया गया था। आप सभी को बता दें कि गज़ल खुद भी ट्रांसवुमेन हैं और उनका कहना है कि ”जब तक वह कम्युनिटी का प्रतिनिधित्व और सपने देखने वाले कई लोगों को प्रेरित करती हैं, वे अपनी जेंडर पहचान को लेकर संतुष्ट हैं,” जी हाँ, हाल ही में गज़ल से पूछा कि ”जब लोग आपके काम की अपेक्षा आपकी सेक्सुअलिटी को हाइलाइट करते हैं तो इससे परेशानी होती है?”
इसके जवाब में उन्होंने कहा, ”इस सवाल का जवाब हां या फिर नहीं हो सकता है। प्रोफेशनल दुनिया में, मैं चाहती हूं कि मैं एक ट्रांसवुमेन के बजाय अपने काम के लिए जानी जाऊं। मेरा जेंडर मेरी आइडेंटिटी नहीं हो सकती है जबकि मैं ऐसी कहानी लिख रही हूं जिसमें कोई जेंडर नहीं है।इसके आगे उन्होंने कहा कि हमारे समुदाय को रिप्रेजेंट करने वालों की कमी है जो महत्वपूर्ण है। जब मैं यंग थी और अकेला थी तो मुझे घुटन महसूस होती थी क्योंकि मेरे आस-पास कोई भी नहीं समझता कि मैं क्या कर रही थी. इंटरनेट पर सर्च करने पर मुझे दो ट्रांसवुमेन महिलाएं मिलीं जो अमेरिका में रहती थीं। उनके संपर्क में आकर जाना कि वहां पर मेरे जैसे कई लोग हैं और मैं अलग नहीं हूं. छोटे शहरों और गांवों में युवा लोग हमें देखते हैं क्योंकि वे हमें अपने प्रतिनिधि के रूप में देखते हैं।”
इसी के साथ गज़ल ने कहा, ”लिपस्टिक अंडर माय बुर्का की मैंने कहानी नहीं लिखी थी लेकिन उसके डायलॉग लिखे थे। मैंने फिल्म के फीमेल कैरेक्टर्स के साथ जुड़ाव महसूस किया क्योंकि वे पुरुष प्रधान समाज के बनाए नियमों के अंदर घुट रहे थे। मैंने भी पिछले 25 साल तक घुटन महसूस किया क्योंकि मैं एक पुरुष के शरीर में फंसी हुई एक महिला थी।”